कथाओं का सिलसिला, कथक के साथ!!

Sunday, July 17, 2005

कशिश - ३

वह बंधन में बंधती जा रही थी।
किस हक्क से, यह वक समझ नही पायी।

Monday, July 11, 2005

कशिश - २

यह लहरें उस के मन के किसी कोने को छू गयीं। उस स्पर्श ने कुछ सोये अरमान जगा दिये, अतीत के कुछ ऐसे पलों की यादें फिर जगा दी, ऐसी ख्वाहिशें जिन्हें वह महसूस करना भूल ही गई थी।

वेद, कशिश के मन को मोहित कर गया। इंतज़ार था उस दिन का जब वह उसके उस तन को भी अंकित कर दे।