कथाओं का सिलसिला, कथक के साथ!!

Friday, December 31, 2004

नया साल मुबारक

आप सभी को नये साल की शुभकामनाऍ।

Saturday, December 25, 2004

कथक की कथायें, अभ आपहिकी अपनी बोली में

हम ज़रुर कहें, कि अब हम विशव निवासी हैं, परंतु, कही ना कही हमारे जड़ हमें खींच ही लेते हैं। मैंने हमेशा माना, और कहा कि अंग्रेज़ी ही मेरी भाशा हे। और कयों ना हो ? कभी हिन्दी की ओर जरुरत से ज्यादा ध्यान देने का खयाल आया ही नही। लेकिन ऐक दिन ऐसेही बैठे बात छिडी, तो लगा कि क्या हिन्दी का अंत भी उन अनेक भाशाओं कि तरह होगा जिन्हे कोइ आज पूछता तक नही है?

क्या यह उस बात का असर है, या इसका कि जब आये दिन हम हिन्दी में बात करतें हैं, कुछ हद्द तक सोचते भी हैं, तो क्यों ना उसी भाशा में लिखा भी जाये? और इसका यह मतलब भी नही है कि हम अपने में ही इस कगर रम जायें कि दूसरों का खयाल ना आये।

कुछ सवाल हैं, कुछ खयाल हैं, जो इस वक्त कुछ घुंदलें से हें...... फिर भी इस भाशा में कूछ तो है, जो बार बार अपनी ओर ख़ीच लेता है, और आपके लिये, कथक की कथायें, अपनी ही बोली में!!