कशिश - २
यह लहरें उस के मन के किसी कोने को छू गयीं। उस स्पर्श ने कुछ सोये अरमान जगा दिये, अतीत के कुछ ऐसे पलों की यादें फिर जगा दी, ऐसी ख्वाहिशें जिन्हें वह महसूस करना भूल ही गई थी।
वेद, कशिश के मन को मोहित कर गया। इंतज़ार था उस दिन का जब वह उसके उस तन को भी अंकित कर दे।
वेद, कशिश के मन को मोहित कर गया। इंतज़ार था उस दिन का जब वह उसके उस तन को भी अंकित कर दे।
3 Comments:
wow!! (y)
I didn't understand this post too :)
By
Sudhakar, at 12:29 AM
Typos
स्पर्ष > स्पर्श
कुच्छ > कुछ
ख्वाइशों > ख्वाहिशें
जिन्हे > जिन्हें
जभ > जब
By
Anonymous, at 10:09 AM
Thank You Anon. I shall make the corrections soon :)
By
Kathak - The Story Teller!, at 6:57 PM
Post a Comment
<< Home