कथाओं का सिलसिला, कथक के साथ!!

Monday, July 11, 2005

कशिश - २

यह लहरें उस के मन के किसी कोने को छू गयीं। उस स्पर्श ने कुछ सोये अरमान जगा दिये, अतीत के कुछ ऐसे पलों की यादें फिर जगा दी, ऐसी ख्वाहिशें जिन्हें वह महसूस करना भूल ही गई थी।

वेद, कशिश के मन को मोहित कर गया। इंतज़ार था उस दिन का जब वह उसके उस तन को भी अंकित कर दे।

3 Comments:

  • wow!! (y)
    I didn't understand this post too :)

    By Blogger Sudhakar, at 12:29 AM  

  • Typos
    स्पर्ष > स्पर्श
    कुच्छ > कुछ
    ख्वाइशों > ख्वाहिशें
    जिन्हे > जिन्हें
    जभ > जब

    By Anonymous Anonymous, at 10:09 AM  

  • Thank You Anon. I shall make the corrections soon :)

    By Blogger Kathak - The Story Teller!, at 6:57 PM  

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