ऐक तमाशा, और फिर कयी
वह फिर वह वहीं खडी थी
फिर वही आस
उस गुज़रे वक्त को बदलने का प्रयास
फिर मुट्ठी में सभ कुछ बंद कर लेने की वही नाकामयाब कोशिश
वही आस लगाये, उसी इंतज़ार में
वही दिन का ढलना
वही सूरज का फिर से उगना
और कुछ भी ना बदलना
समय के पैये तो खैर क्या थंबते?
वह भी कभ तक आस लगाये बैठी रहती?
मन के किसी कोने में उन अनगिनत लमहों की ख्वाइश उसने छिपाली
उस प्यार को तराशने का खयाल वक्त ने मिटा दिया
जीवन धारा चलती रही
उस धारा के साथ वह भी बहती रही
चंद लोगों के लिखे इस तमाशे को
ऐक अजनबी की आँखो से वह देखती रही
फिर वही आस
उस गुज़रे वक्त को बदलने का प्रयास
फिर मुट्ठी में सभ कुछ बंद कर लेने की वही नाकामयाब कोशिश
वही आस लगाये, उसी इंतज़ार में
वही दिन का ढलना
वही सूरज का फिर से उगना
और कुछ भी ना बदलना
समय के पैये तो खैर क्या थंबते?
वह भी कभ तक आस लगाये बैठी रहती?
मन के किसी कोने में उन अनगिनत लमहों की ख्वाइश उसने छिपाली
उस प्यार को तराशने का खयाल वक्त ने मिटा दिया
जीवन धारा चलती रही
उस धारा के साथ वह भी बहती रही
चंद लोगों के लिखे इस तमाशे को
ऐक अजनबी की आँखो से वह देखती रही